आज का विचार

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमे रसधार नहीं वो ह्रदय नहीं वह पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

मैथली लोकगीत

सावन-भादों मे बलमुआ हो चुबैये बंगला

सावन-भादों मे...!

दसे रुपैया मोरा ससुर के कमाई हो हो,

गहना गढ़एब की छाबायेब बंगला सावन-भादों मे...! ]

पांचे रुपैया मोरा भैन्सुर के कमाई हो हो,

चुनरी रंगायब की छाबायेब बंगला सावन-भादों मे...! दुइये रुपैया मोरा देवर के कमाई हो हो,

चोलिया सियायेब की छाबायेब बंगला सावन-भादों मे...!

एके रुपैया मोरा ननादोई के कमाई हो हो,

टिकुली मंगायेब की छाबायेब बंगला सावन-भादों मे...!

एके अठन्नी मोरा पिया के कमाई हो हो, खिलिया मंगाएब की छाबायेब बंगला सावन-भादों मे...!

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