द्वन्द हमेशा हर पल घेरे रखता है
नर पुगंव वह जो मार द्वन्द को स्वार्थ रहित हो
जन जन के कल्याणों में जीता है
निजता का बोध दर्प भाव मिथ्या अहंकार को
मिटा मिटा निर्विकार न्याय हेतू
जो नर पुगंव जीता है
शास्त्रों ने उसका ही यश गया है
श्रेठ मनुज वो ही कहलाया है
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