मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।
यह तीन लोकों से न्यारी काशी ।
सुज्ञान धर्म और सत्यराशी ।।
बसी है गंगा के रम्य तट पर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
नये नहीं हैं यह ईंट पत्थर ।
है विश्वकर्मा का कार्य सुन्दर ।।
रचे हैं विद्या के भव्य मन्दिर, यह सर्वस्रष्टि की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
यहाँ की है यह पवित्र शिक्षा ।
कि सत्य पहले फिर आत्मरक्षा ।।
बिके हरिश्चन्द्र थे यहीं पर, यह सत्यशिक्षा की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
यह वेद ईश्वर की सत्यवानी ।
बने जिन्हें पढ के ब्रह्यज्ञानी ।।
थे व्यास जी ने रचे यहीं पर, यह ब्रह्यविद्या की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
यह मुक्तिपद को दिलाने वाले ।
सुधर्म पथ पर चलाने वाले ।।
यहीं फले फूले बुद्ध शंकर, यह राजॠषियों की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
सुरम्य धारायें वरुणा अस्सी ।
नहायें जिनमें कबीर तुलसी ।।
भला हो कविता का क्यों न आकर, यह वाक्विद्या की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
विविध कला अर्थशास्त्र गायन ।
गणित खनिज औषधि रसायन ।।
प्रतीचि-प्राची का मेल सुन्दर, यह विश्वविद्या की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
यह मालवीय जी की देशभक्ति ।
यह उनका साहस यह उनकी शक्ति ।।
प्रकट हुई है नवीन होकर, यह कर्मवीरों की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
गंगा के सुरम्य तट पर अवस्थित घाट हो या मंदिरों में घंटों की मनोरम ध्वनि , ॐ नमः शिवाय के उद्घोष के साथ पूर्व दिशा में उदयाचलगामी भगवान भास्कर को जल अर्पित इस नगरी की सुबह होती है| ब्रह्ममुहूर्त से गोधूली तक ऐसा प्रतीत होता है की संपूर्ण काशी नगरी भक्ति भाव से परिपूर्ण हो एक अभिनव जीवन के प्रारंभ होने का सन्देश देती है | निष्काम, निष्कपट, एवं निश्छल गंगा की अविरल धारा सृजन, संबल, और सौहादर्य के साथ जीने की सीख देते हुए सतत आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है | जीवन सतत चलने का नाम है, इस भावना से ओत प्रोत काशी नगरी प्राचीन काल से आज तक हमारे आध्यात्मिक सोच को सदैव एक नयी दिशा देती आ रही है |यह तीन लोकों से न्यारी काशी ।
सुज्ञान धर्म और सत्यराशी ।।
बसी है गंगा के रम्य तट पर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
नये नहीं हैं यह ईंट पत्थर ।
है विश्वकर्मा का कार्य सुन्दर ।।
रचे हैं विद्या के भव्य मन्दिर, यह सर्वस्रष्टि की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
यहाँ की है यह पवित्र शिक्षा ।
कि सत्य पहले फिर आत्मरक्षा ।।
बिके हरिश्चन्द्र थे यहीं पर, यह सत्यशिक्षा की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
यह वेद ईश्वर की सत्यवानी ।
बने जिन्हें पढ के ब्रह्यज्ञानी ।।
थे व्यास जी ने रचे यहीं पर, यह ब्रह्यविद्या की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
यह मुक्तिपद को दिलाने वाले ।
सुधर्म पथ पर चलाने वाले ।।
यहीं फले फूले बुद्ध शंकर, यह राजॠषियों की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
सुरम्य धारायें वरुणा अस्सी ।
नहायें जिनमें कबीर तुलसी ।।
भला हो कविता का क्यों न आकर, यह वाक्विद्या की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
विविध कला अर्थशास्त्र गायन ।
गणित खनिज औषधि रसायन ।।
प्रतीचि-प्राची का मेल सुन्दर, यह विश्वविद्या की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
यह मालवीय जी की देशभक्ति ।
यह उनका साहस यह उनकी शक्ति ।।
प्रकट हुई है नवीन होकर, यह कर्मवीरों की राजधानी ।
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
काशी की सुबह की अपनी ही महत्ता है | एक ऐसी नगरी जहाँ गंगा के पश्चिमी तट पर खड़े हो पूर्व में उदीयमान भगवान आदित्य का जलाभिषेक परम पावनी गंगा जल से किया जाता है | अतः कहा जा सकता है कि प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति, साधना, एवं शिक्षा के ध्रुव के रूप में काशी का अपना एक मूर्धन्य स्थान रहा है |
पंडित विद्यानिवास मिश्र के शब्दों में " ऐसा कोई भी समय नहीं आएगा कि काशी में कोई मूर्धन्य साधक न हो, मूर्धन्य विद्वान न हो, मूर्धन्य कलाकार न हो, मूर्धन्य रचनाकार न हो, मूर्धन्य वंचक न हो, मूर्धन्य पाखंडी न हो, मूर्धन्य अवधूत न हो, मूर्धन्य जौहरी न हो- ऐसे मूर्धन्य व्यक्तियों की श्रृंखला ही वस्तुतः काशी है |
क्रमशः ...........................................................
रचनाकार: अजीत कुमार झा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें