आज का विचार

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमे रसधार नहीं वो ह्रदय नहीं वह पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

काशी: भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं कि नगरी- अजीत कुमार झा

वह नगरी जिसकी पहचान सात वार और नौ त्यौहारों से होती  है, वह नगरी जिसे महाश्मशान के नाम से जाना जाता है, विश्वनाथ के रूप में जहाँ स्वयं त्रिनेत्रधारी भगवान भोले शंकर निवास करते है और जो सर्व शिक्षास्थली के रूप में विश्व भर में जानी  जाती है- उस पावन शिव की नगरी कि पहचान वाराणसी अर्थात काशी के रूप में होती है| भारत की आध्यात्मिक राजधानी के रूप में काशी की पहचान होती है, यह नगरी हम सभी भारतीयों के मन मंदिर में रची बसी है|  भारत के महानतम वैज्ञानिको में एक डॉ शांति स्वरुप भटनागर ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलगीत के माध्यम से संपूर्ण काशी नगरी की ही व्याख्या कर दी है| उनके शब्दों में
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।


यह तीन लोकों से न्यारी काशी ।

सुज्ञान धर्म और सत्यराशी ।।

बसी है गंगा के रम्य तट पर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।

मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।

नये नहीं हैं यह ईंट पत्थर ।

है विश्वकर्मा का कार्य सुन्दर ।।

रचे हैं विद्या के भव्य मन्दिर, यह सर्वस्रष्टि की राजधानी ।

मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।

यहाँ की है यह पवित्र शिक्षा ।

कि सत्य पहले फिर आत्मरक्षा ।।

बिके हरिश्चन्द्र थे यहीं पर, यह सत्यशिक्षा की राजधानी ।

मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।

यह वेद ईश्वर की सत्यवानी ।

बने जिन्हें पढ के ब्रह्यज्ञानी ।।

थे व्यास जी ने रचे यहीं पर, यह ब्रह्यविद्या की राजधानी ।

मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।

यह मुक्तिपद को दिलाने वाले ।

सुधर्म पथ पर चलाने वाले ।।

यहीं फले फूले बुद्ध शंकर, यह राजॠषियों की राजधानी ।

मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।

सुरम्य धारायें वरुणा अस्सी ।

नहायें जिनमें कबीर तुलसी ।।

भला हो कविता का क्यों न आकर, यह वाक्विद्या की राजधानी ।

मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।

विविध कला अर्थशास्त्र गायन ।

गणित खनिज औषधि रसायन ।।

प्रतीचि-प्राची का मेल सुन्दर, यह विश्वविद्या की राजधानी ।

मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।

यह मालवीय जी की देशभक्ति ।

यह उनका साहस यह उनकी शक्ति ।।

प्रकट हुई है नवीन होकर, यह कर्मवीरों की राजधानी ।

मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।।
गंगा के सुरम्य तट पर अवस्थित घाट हो या मंदिरों में घंटों की मनोरम ध्वनि  , ॐ नमः शिवाय के उद्घोष के साथ पूर्व दिशा में उदयाचलगामी   भगवान भास्कर को जल अर्पित इस नगरी की सुबह होती है| ब्रह्ममुहूर्त से गोधूली तक ऐसा प्रतीत होता है की संपूर्ण काशी नगरी भक्ति भाव से परिपूर्ण हो एक अभिनव जीवन के प्रारंभ होने का सन्देश देती है | निष्काम, निष्कपट, एवं निश्छल गंगा की अविरल धारा सृजन, संबल, और सौहादर्य के साथ जीने की सीख देते हुए सतत आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है | जीवन सतत चलने का नाम है,  इस भावना से ओत प्रोत काशी नगरी प्राचीन काल से आज तक हमारे आध्यात्मिक सोच को सदैव एक नयी दिशा देती आ रही है |

काशी   की सुबह की अपनी ही महत्ता है | एक ऐसी नगरी जहाँ गंगा के पश्चिमी तट पर खड़े हो पूर्व में उदीयमान भगवान आदित्य का जलाभिषेक परम पावनी गंगा जल से किया जाता है | अतः कहा जा सकता है कि प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति, साधना, एवं शिक्षा के ध्रुव के रूप में काशी का अपना एक मूर्धन्य स्थान रहा है |

पंडित विद्यानिवास मिश्र के शब्दों में " ऐसा कोई भी समय नहीं आएगा कि काशी में कोई मूर्धन्य साधक न हो, मूर्धन्य विद्वान न हो, मूर्धन्य कलाकार न हो, मूर्धन्य रचनाकार न हो, मूर्धन्य वंचक न हो, मूर्धन्य पाखंडी न हो, मूर्धन्य अवधूत न हो, मूर्धन्य जौहरी न हो- ऐसे मूर्धन्य व्यक्तियों की श्रृंखला ही वस्तुतः काशी है |
                                                                                         क्रमशः ...........................................................
  रचनाकार: अजीत कुमार झा

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