भाषा वैभव
राष्ट्रभाषा हिंदी को समर्पित "अजीत" का एक प्रयास
आज का विचार
जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमे रसधार नहीं वो ह्रदय नहीं वह पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं
शनिवार, 20 फ़रवरी 2010
उलझा ही रहने दे मुझे मुकदर की तरह ये तेरी जुल्फ नहीं जो सवर जाएगी
लाखो तूफ़ान है सीने में फिर भी मुस्काना पड़ता है
बेठे है मफिल में फिर भी हर राज छिपाना पड़ता है
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