घर जाने की आस लगाए
बैठे हैं कर्मयोगी
तुच्छ राजनीति की चक्की में
पिस कर हो गये ये वियोगी।
धूप में नंगे पांव चलते
प्रवासी मजदूरों का रैला
बाहर गर्मी का प्रकोप
भीतर धधकती क्षुधा की ज्वाला।
कहते है नौनिहालों को
जो भारत का भविष्य
टीवी चैनलों के कमरों में बैठ कर
डिबेट द्वारा तय करते वो देश की तकदीर।
संविधान के विभिन्न पहलुओं का
क्यों न फिर से हो निरीक्षण
संघ राज्य व समवर्ती सूचियों का
एक बार फिर से हो परीक्षण ।
रेल की तरह सड़क परिवहन भी हो अब
संघ सरकार के संग
साथ ही इसके शिक्षा स्वास्थ्य भी हो
भारत सरकार का ही अंग।
प्रदेशों की कलुषित राजनीति का दर्द झेलती जनता
माखौल उड़ाते आरोप प्रत्यारोप कर एसी में बैठें नेता।
अजीत कुमार झा
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