भाषा वैभव
राष्ट्रभाषा हिंदी को समर्पित "अजीत" का एक प्रयास
आज का विचार
जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमे रसधार नहीं वो ह्रदय नहीं वह पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं
मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014
वर्त्तमान चाहे कितना भी अंधकारमय क्यों न हो, उसमें कुछ न कुछ शानदार अवश्य ही छिपा रहता है
।
अजीत कुमार झा
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