हमारी हिंदी
अजीत कुमार झा
अलंकारों छंदों से शोभित हिंदी राजकुमारी
लिखे अगर हिंदी में पाती वाह वाह करती दुनिया सारी ।
निज भाषा के माधुर्य पर न्योछावर भारतवासी
अंग्रेजी के अमर बेल में कहाँ ये सुविधा सारी ।
भाव विचारों के अभिव्यक्ति में हिंदी है सिरमौर
अंग्रेजी इक बैशाखी है, जिसका नहीं कोई ऒर छोर ।
आ गया अब वह समय जब हिंदी को बचाना होगा
ममी को माँ और डेड को पिताजी बनाना होगा ।
सर के मोह जाल से मुक्त हो गुरूजी को अपनाना होगा
सिस्टर की शिष्टता से निकल बहन को पास बिठाना होगा ।
मालवीय भारतेन्दु के हिंदी की लाज बचानी होगी
समय आज आ गया है 'अजीत' हिंदी को भारत की बिंदी बनानी होगी ।
अजीत कुमार झा
पुस्तकालयाध्यक्ष
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