आज का विचार

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमे रसधार नहीं वो ह्रदय नहीं वह पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं

गुरुवार, 16 मई 2013

नदियाँ चिर काल से सतत गति से बहती हुए सागर से केवल इस आस में मिलती है कि  एक न एक दिन मैं सागर के खारे जल को मीठा बना दूँगी । 

तात्पर्य यह है कि नदी अपने मृदुल और मिठास युक्त स्वभाव को असंभव परिस्थिति में भी नहीं छोड़ती है । 

अजीत झा 

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