नदियाँ चिर काल से सतत गति से बहती हुए सागर से केवल इस आस में मिलती है कि एक न एक दिन मैं सागर के खारे जल को मीठा बना दूँगी ।
तात्पर्य यह है कि नदी अपने मृदुल और मिठास युक्त स्वभाव को असंभव परिस्थिति में भी नहीं छोड़ती है ।
अजीत झा
तात्पर्य यह है कि नदी अपने मृदुल और मिठास युक्त स्वभाव को असंभव परिस्थिति में भी नहीं छोड़ती है ।
अजीत झा