आज का विचार

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमे रसधार नहीं वो ह्रदय नहीं वह पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं

बुधवार, 25 अगस्त 2010

कागज़

कागज़ 
जहाँ कोई नहीं होता 
दर्द बाटने के लिए 
जहाँ किसी को
कोई फर्क नहीं पड़ता 
किसी के गम से 
ऐसे में जरुरी है 
अपने आप ही 
आसुओ का बह जाना 
क्योकि जहर बन जाते आंसू 
जब दर्द की परत जमती है 
इसलिये, उससे पहले जरुरी  है 
दिल का हल्का होना 
कोरा कागज, मेरा साथी,
लो बोलने लगा,
दिल की आवाज को,
रोने लगा कागज भी,
दर्द की आवाज से,
कभी असफलताओ के दर्द से,
कभी निराशा की पीड़ा से,
बहुत सहनशील होते है,
ये कागज,
जो चुपचाप, सहज ही,
समेटते जाते है,
जिन्दगी की यादो को,
कभी सुनहरी, तो कभी पथरीली,
राहो का सहारा बनकर,
और उस हद तक साथ देते है,
जहाँ अपने सभी साथ छोड़ देते है,
तभी तो, मेरे-अपने,
अपने है ये कागज 

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