आखिर कहाँ जा रहे है हम
अजीत कुमार झा
अजीत कुमार झा
तकनीकों के प्रयोग से जीवन बना सरल
पर संबंधों के निर्वहन में मानव हुआ विफल |
हँसने के लिए चाहिए अब टीवी का सहारा
शो ख़त्म हुआ और गायब हंसी हमारा |
ऑरकुट फेसबुक में दुनिया गयी सिमट
रिश्ते नाते आस पड़ोस के हो गए अब विकट |
इन्टरनेट ने ग्लोबल विलेज की कल्पना को किया साकार
अपना गाँव और शहर जाना अब हुआ दुश्वार |
तकनीकों के अंध प्रयोग से मशीनी मानव बन गए हम
आगे बढ़ने की होड़ में सबसे कट कर रह गए हम |
ऑफिस से घर पहुँचते स्वयं हाथ टी वी पर चला जाता है
अपनों से दो बातें करने का समय भी नहीं मिल पाता है |
शुभकामनायें भेजने का नया तरीका हुआ ईजाद
बस मैसेज फॉरवर्ड करो लिखने की नहीं है बात |
दूरदर्शन और मोबाइल से बढ गयी नजदीकियां
रिश्ते नाते और चिट्ठियों से बढ गयी है दूरियां |
वक्त है अभी भी 'अजीत' संभला जाय
बाद में पछताना पड़े ऐसी नौबत न आने पाए |
अजीत कुमार झा
पुस्तकालयाध्यक्ष