आज का विचार

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमे रसधार नहीं वो ह्रदय नहीं वह पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

वह नगरी जिसकी पहचान सात वार और नौ त्यौहारों से होती  है, वह नगरी जिसे महाश्मशान के नाम से जाना जाता है, विश्वनाथ के रूप में जहाँ स्वयं त्रिनेत्रधारी भगवान भोले शंकर निवास करते है और जो सर्व शिक्षास्थली के रूप में विश्व भर में जानी  जाती है- उस पावन शिव की नगरी कि पहचान वाराणसी अर्थात काशी के रूप में होती है| भारत की आध्यात्मिक राजधानी के रूप में काशी की पहचान होती है, यह नगरी हम सभी भारतीयों के मन मंदिर में रची बसी है|  भारत के महानतम वैज्ञानिको में एक डॉ शांति स्वरुप भटनागर ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलगीत के माध्यम से संपूर्ण काशी नगरी की ही व्याख्या कर दी है| उनके शब्दों में

मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।
यह तीन लोकों से न्यारी काशी । सुज्ञान धर्म और सत्यराशी ।।
बसी है गंगा के रम्य तट पर, यह सर्वविद्या की राजधानी ।.........
यहाँ की है यह पवित्र शिक्षा । कि सत्य पहले फिर आत्मरक्षा ।।
बिके हरिश्चन्द्र थे यहीं पर, यह सत्यशिक्षा की राजधानी ।.............
यह मुक्तिपद को दिलाने वाले ।सुधर्म पथ पर चलाने वाले ।।
यहीं फले फूले बुद्ध शंकर, यह राजॠषियों की राजधानी ।............
सुरम्य धारायें वरुणा अस्सी ।, नहायें जिनमें कबीर तुलसी ।।
भला हो कविता का क्यों न आकर, यह वाक्विद्या की राजधानी ।..........


गंगा के सुरम्य तट पर अवस्थित घाट हो या मंदिरों में घंटों की मनोरम ध्वनि  , ॐ नमः शिवाय के उद्घोष के साथ पूर्व दिशा में उदयाचलगामी   भगवान भास्कर को जल अर्पित इस नगरी की सुबह होती है| ब्रह्ममुहूर्त से गोधूली तक ऐसा प्रतीत होता है की संपूर्ण काशी नगरी भक्ति भाव से परिपूर्ण हो एक अभिनव जीवन के प्रारंभ होने का सन्देश देती है | निष्काम, निष्कपट, एवं निश्छल गंगा की अविरल धारा सृजन, संबल, और सौहादर्य के साथ जीने की सीख देते हुए सतत आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है | जीवन सतत चलने का नाम है,  इस भावना से ओत प्रोत काशी नगरी प्राचीन काल से आज तक हमारे आध्यात्मिक सोच को सदैव एक नयी दिशा देती आ रही है |

काशी   की सुबह की अपनी ही महत्ता है | एक ऐसी नगरी जहाँ गंगा के पश्चिमी तट पर खड़े हो पूर्व में उदीयमान भगवान आदित्य का जलाभिषेक परम पावनी गंगा जल से किया जाता है | अतः कहा जा सकता है कि प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति, साधना, एवं शिक्षा के ध्रुव के रूप में काशी का अपना एक मूर्धन्य स्थान रहा है |

पंडित विद्यानिवास मिश्र के शब्दों में " ऐसा कोई भी समय नहीं आएगा कि काशी में कोई मूर्धन्य साधक न हो, मूर्धन्य विद्वान न हो, मूर्धन्य कलाकार न हो, मूर्धन्य रचनाकार न हो, मूर्धन्य वंचक न हो, मूर्धन्य पाखंडी न हो, मूर्धन्य अवधूत न हो, मूर्धन्य जौहरी न हो- ऐसे मूर्धन्य व्यक्तियों की श्रृंखला ही वस्तुतः काशी है |

वास्तव में काशी ओर गंगा सदियों से ही भारतीय परम्पराओं की वाहिनी रही है | 

काशी की भौगोलिक स्थिति 

काशी अर्थात वाराणसी नगरी भारत के उत्तेर प्रदेश राज्य के पूर्वी छोर पर बसा है | सामान्यतया पूर्वांचल के केंद्र में स्थित काशी नगरी पर पड़ोसी राज्य बिहार का प्रभाव सुस्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है | गंगा के उत्तरी तट पर अर्धचन्द्राकार रूप में बसा यह शहर २५'१८' उतरी आकांश एवम ८३'१' पूर्वी देशांतर पर सिथ्थ है १ इस नगरी से करीब १३० किलोमीटर पर सिथत इलाहाबाद (प्रयाग ) से भारतीय मानक समय रेखा गुजरती है, जिससे यह स्वत: ही सिद्ध हो जाता है सम्पूर्ण भारतीय समय पद्धति  पर इस  नगरी का कितना प्रभाव है |


परम पावनी गंगा के तट पर बसी काशी नगरी में गंगा की अपनी एक भौगोलिक विशेषता है| कहा जाता है की काशी भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी है| काशी में गंगा का बहाव दक्षिण से उत्तर की ओर है| इसी कारण यहाँ की गंगा को उत्तरवाहिनी गंगा के नाम से भी जाना जाता है| सामान्यतया गंगा नदी में जल का प्रवाह उत्तर पश्चिम हिमालय से दक्षिण पूर्व बंगाल की खाड़ी की ओर होता है| चूँकि काशी में इसका प्रभाव विपरीत दिशा में है, अत: यह काफी धीमा है और इस कारण दैनिक उपयोग हेतू यहाँ पानी हमेशा बना रहता है | काशी ही एक मात्र ऐसी नगरी है जिसकी सीढ़ियों से गंगा  कभी भी नहीं हटी है जबकि अन्य शहरों में नदियों द्वारा अपना रास्ता बदलते रहने से वे दूर हटती जा रही है |


काशी नगरी तीन और से नदियों से धिरी है जिससे यह प्रतीत होता है की स्वयं प्रकृति ने इस अदभुत नगरी की किलेबंदी कर राखी है | नगर का पूर्वी भाग गंगा नदी, उत्तरी भाग वरुणा नदी एवं दक्षिणी भाग अस्सी नदी से धीर हुआ है | काशी की एक और विशेषता है की यहाँ गंगा का बहाव वलयाकार है | यदि कोई नदी वलयाकार अथवा सर्पिलाकार रूप में प्रवाहित होती है तो उसके तटों पर बसे शहरो में प्राय: जल संकट का सामना नहीं करना पड़ता है | इसके विपरीत यदि नदियाँ सीधी बहती है तो समय के साथ साथ वह नदी नगर/ शहर से क्रमश: दूर होती जाती है और फलस्वरूप कुछ वर्षो पश्चात् उस नगर/ शहर में जल संकट का सामना करना पर सकता है | काशी इस दृष्टिकोण से एक भाग्यशाली नगरी है | काशी में गंगा का बहाव देखा जाय तो हम पते है की यहाँ मिर्जापुर की ओर से अति गंगा की धारा सर्वप्रथम रामनगर के पूर्वी किनारों से टकराती है ओर फिर उलट कर वाराणसी के घाटों से टकराती है |


दर्शनीय स्थल 


१. काशी  विश्वनाथ मंदिर (गौदोलिया): वारानाशी (जिसे भारत की संस्कर्ती राजधानी की भी संज्ञा दी जाती है ) मे स्थित शिव के द्रव्दाश जयोतिर्लिंगो में एक गंगा के पशिचमी तट के द्शास्व्मेध घाट के तट पर अव्शिथ्त विस्वनाथ मंदिर को भगवान भोले  शंकर की निवाश स्थली मन गता है 1  काशी विस्वनाथ मंदिर लाखो - करोडो भारतीयों के शारदा एवं विश्वास का एक अनुपम स्थल है एवं भारत के पवित्रतम मंदिरों में एक है 1 काशी विस्वनाथ ज्योर्तिलिंग का दर्शन अन्य काशी विस्वनाथ ज्योर्तिलिंग का दर्शन अन्य सभी  ज्योर्तिलिंग की अपेछा अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है | काशी विस्वनाथ मंदिर सांस्कृतिक परम्पराओ एवं उच्चतम अध्यात्मिक मूल्यों का कालांतर से एक जीवंत दृश्य दर्शाता है 1 काशी  विश्वनाथ के वर्तमान मोजूद मंदिर का पुनरोहन इन्दोर की महारानी अहिल्याबाई होलकर  ने १७८० में कराया था १ १८३९ में पंजाब के शासक रंजित सिंह ने इस मंदिर के गुम्बजो को सोने से अलंकृत करवाया | यह मंदिर प्रात:२.३० बजे मंगल आरती के लिए खोला जाता है तथा प्रात: ३.०० से ४.०० बजे के दौरान टिकेट के साथ दर्शक आरती में शामिल हो सकते है | बाबा विश्वनाथ के दर्शन का सामान्य समय ११.३० से १२.०० बजे तक है | ११.३० से १२.०० बजे मध्यान भोग आरती हेतू मंदिर के पट बंद कर दिए जाते है और पुन: १२-७ बजे सांय  काल तक यहाँ दर्शन किये जा सकते है | संध्या ७-८.३० तक saptarishi आरती होती है | और पुन: ८.३०-९.०० बजे तक जनता दर्शन कर सकती है | ९ बजे श्रृंगार  भोग आरती प्रारंभ होती है और ११ बजे मंदिर के कपट बंद हो जाते है |


अन्नपूर्णा  मंदिर :     काशी विश्वनाथ मंदिर के निकट ही माता अन्नपूर्णा का भव्य मंदिर है | यह मंदिर भी काशी के महत्वपूर्ण मंदिरों में एक है | अक्षय तृतीया (परशुराम जयंती) को इस मंदिर में श्रद्धालु भक्तो की अपार भीड़ माता के दर्शन हेतू लगी रहती है | ऐसी मान्यता है की माता की कृपा जिस पर हो जाती है उसके घर का अन्न भंधर कदापि खली नहीं होता है |


कल भैरव मंदिर (विशेश्वरगंज): काशी विश्वनाथ मंदिर से लगभग १.६ किमी उत्तर में काल भैरव का अति प्राचीन मंदिर भी दर्शनीय है | काल भैरव को काशी का कोतवाल भी कहा जाता है | ऐसी मान्यता है की बाबा विश्वनाथ के दर्शन पूर्व काल भैरव से अनुमति लेनी आवश्यक है |


संकट मोचन मंदिर (लंका के निकट): राम भक्त हनुमान जी का यह मंदिर सोलहवी शताब्दी में तुलसीदास द्वारा स्थापित किया गया | वाराणसी के दक्षिणी भाग में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निकट अवस्थित इस मंदिर के बारे में यह कहा जाता है की जो यहाँ सच्चे मन से प्राथना करता है, उसकी प्राथना अवश्य ही पूरी होती है | प्रत्येक मंगलवार  एवं शनिवार को यहाँ हजारों की संख्या में श्रद्धालुओ की भीड़ उमड़ पड़ती है | ऐसी मान्यता है की जो मनुष्य शनि के कोप से पीड़ित है, वह संकटमोचन मंदिर जाकर अवश्य ही ठीक हो जाता है | इस मंदिर की एक विशेषता है की यहाँ हमुमान एवं राम की प्रतिमा आमने सामने है |


दुर्गा मंदिर एवं दुर्गा कुण्ड: वाराणसी में स्थित दुर्गामंदिर यहाँ के प्राचीन मंदिरों में एक है जो नगर शैली में निर्मित है | शिखरों से सुशोभित लाल रंग में यह मंदिर अपनी प्राचीनता का एहसास कराती है |यह मंदिर एक आयताकार कुण्ड के पास अवस्थित है, जिसे दुर्गा कुण्ड कहा जाता है | पुरानो में ऐसी मान्यता है की देवी दुर्गा यहाँ निवास करती थी तथा इस पवित्र शहर की रक्षा करती थी | यह भी कहा जाता है की माँ की वर्त्तमान प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई है | नवरात्रों के समय इस मंदिर की शोभा बहुत निराली होती है |


तुलसी मानस मंदिर : दुर्गा मंदिर के आसन्न में अवस्थित तुलसी मानस मंदिर भगवान राम को समर्पित है |  इस मंदिर की सबसे खास विशेषता है कि इस मंदिर के दीवारों पर संपूर्ण रामचरित मानस उद्हरित है | श्वेत संगमरमरो से सुसज्जित इस मंदिर का निर्माण १९६४ में हुआ था | इस मंदिर कि वास्तुकला अपने आप में दर्शनीय है | ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण उसी स्थान पर किया गया है जहा तुलसी दास ने रामचरित मानस कि रचना की यह मंदिर प्रात: ५:३० से १२:०० तक तथा पुन: ३:३० से ९ बजे तक दर्शन हेतू खुला रहता है |
नया विश्वनाथ मंदिर :- काशी हिन्दू विश्व विधालय के बीचो विनय अवासिथ्त भगवान शिव के इस मंदिर को बिरला मंदिर भी कहा जाता है, जिसके सहायता से इस मंदिर का निर्माण करा गया है | नया विश्वनाथ मंदिर पुराने  विश्वनाथ मंदिर कि अनुकृति है | स्वेत संगमरमर के निर्मित इस मंदिर कि संकल्पना माननीय मदन मोहन मालवीय जी कि थी |
भारत माता मंदिर :- भारत माँ को सम्र्परित यह अपने आप में एक मात्र मंदिर है जो महात्मा गाँधी काशी विधापीठ के निकट है | इस मंदिर का निर्माण बाबु शिव प्रसाद गुप्त ने किया और इसका उद्घाटन १९३६ में महात्मा गाँधी द्वारा किया गया | भारत माँ के प्रतिमा अविभाज्य भारत, पर्वत सृख्लाओ , मैदानों एवं सागर की प्रतिक है |
कर्दमेश्वर मंदिर - पंचकोसी मार्ग, कंखा पर सिथ्त यह मंदिर गाहडवाल युग का एक मात्र सुरक्षित मंदिर है | यह  गाहडवाल मंदिर वास्तु का अप्रतिम साक्ष्य है |
काशी के प्रमुख पर्व / त्योहार :- वाराणसी भारतीय परम्पराओ