आज का विचार

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमे रसधार नहीं वो ह्रदय नहीं वह पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं

गुरुवार, 15 जुलाई 2010

आस का मंदिर - अजीत कुमार झा

आस का मंदिर
प्रथम प्रस्फुटित नव किरण की आस में
बिखरी चांदनी के सहवास मे
धैर्य व विश्वास के साथ मे
एक नया कदम मंजिल की ओर बढायें
स्नेहीजनों का हाथ लेकर हाथ में  |

जैसे संवर जाती है तक़दीर शिल्पकार के हाथ से 
बंधकर अटककर टूटकर उड़ती है पतंग निश्चल भाव से 
रात जाती है इक नव प्रभात की आस में
जिन्दगी के अर्श पर मजबूरियों  के फर्श पर 
धैर्य कभी कम न हो मुश्किलों को देख कर
इक नया कदम बढ़ाएं अंधियारों को चीरकर |

अगर चाहते हो जीवन में सही दिशा का ज्ञान 
बन कर सारस नभ मे भरो उड़ान 
याद हमेशा रखना 'अजीत' कि यह वाणी 
कुछ तारो के टूटने से आसमान होता नहीं खाली |

भूत को बिसार के भविष्य को संवारें हम 
वर्तमान का कर उपयोग जीवन को बनाये हम
काँटों की सेज से पुष्प को चुन चले 
एक स्वाति कि बूंद से मन को तृप्त करे 
याद रखे हमेशा  यह,  आनंद यात्रा में है
गंतव्य पहुचने में नहीं,
हमारा कर्तव्य कर्म करने में है फल की चाह मे नहीं

मन मे उजियारा भर, आस का मंदिर बनायें
सहज सरल इस जीवन में उच्च विचार फैलाए 
मनुज मनुज में हो प्यार फैले सुगंध संसार 
आओ मिल जुल कर इस जहाँ को स्वर्ग बनायें |

अजीत कुमार झा